रामसहाय दास की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 40
ऐसे बड़े बिहार सों, भागनि बचि-बचि जाय।
सोभा ही के भार सों, बलि कटि लचि-लचि जाय॥
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सरकी सारी सीस तें, सुनतहिं आगम नाह।
तरकी वलया कंचुकी, दरकी फरकी वाह॥
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झलकनि अधरनि अरुन मैं, दसननि की यौं होति।
हरि सुरंग घन बीच ज्यौं, दमकति दामिनि जोति॥
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जदपि जतन करि मन धरों, तदपि न कन ठहराय।
मिलत निसानन भान को, घन समान उड़ि जाय॥
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लाल चलत लखि वाल के, भरि आए दृग लोल।
आनन तें बात न कढ़ी, पीरी चढ़ी कपोल॥
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