फूलीबाई की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 9
क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।
सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥
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जब लग स्वांस सरीर में, तब लग नांव अनेक।
घट फूटै सायर मिलै, जब फूली पूरण एक॥
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गैंणा गांठा तन की सोभा, काया काचो भांडो।
फूली कै थे कुती होसो, रांम भजो हे रांडों॥
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कामी कंथ के कारणै, कै करीये सिणगार।
पत को पत रीझायलो, फूली को भरतार॥
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जानी आये गोरवें, फूली कीयो विचार।
सब संतन को बालमो, सो मेरो भरतार॥
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