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शृंगारी कवि। नायिका के अंग-वर्णन के लिए प्रसिद्ध। एक-एक अंग पर सौ-सौ दोहे लिखने के लिए स्मरणीय।

शृंगारी कवि। नायिका के अंग-वर्णन के लिए प्रसिद्ध। एक-एक अंग पर सौ-सौ दोहे लिखने के लिए स्मरणीय।

मुबारक के दोहे

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गोरे मुख पर तिल लसे ताहि करौ परनाम।

मानहु चंद बिछाइकै बैठे सालिगराम॥

गोरे मुख पर तिल लसत मेटत है दुख द्वंद।

मानहु बेटा भानु को रह्यो गोद लै चंद॥

तिय निहात जल अलक ते, चुवत नयन की कोर।

मनु खंजन मुख देत अहि, अमृत पोंछि निचोर॥

विधि कपोल टिकिया करी, तहँ तिल धरो बनाय।

यह मन छधित फकीर ज्यों, रहैं टकटकी लाय॥

छूटो चंदन भाल तें, अलक ऊपर छबि देत।

डसी उलटि मनु नागिनी उदर बिराजत सेत॥

तिय नहात जल अलक ते चुअत नयन की कोर।

मनु खंजन मुख देत अहि अमृत पोंछि निचोर॥

तेरे मुख कौ देख ससि कारिस लई लगाय।

नाम कलंकी ह्वै गयो घटै बढ़ै पछताए॥

छत्र तरयोना लट चमर गाल सिंहासन राज।

सोहत तिल राजाधि सम अंग सुदेसर साज॥

बदन चंद मंगल अधर बुध बानी गुरु अंग।

सुक्र दसन तिल सनि लसे अंबर पिय रवि संग॥

बेसरि मोती मीत मन काँप दियो लटकाय।

तिल हबसी लट ताजियो कहै अनत क्यों जाय॥

अलक भाल केसरि सनी घूंघट हरित सोहात।

मनु पुर इन के पात पर उरग सारदू न्हात॥

निछुटो टीको भाल तें अटक्यो लट के छोर।

मनो फिरावत मोहियो चंद लए चक डोर॥

चिबुक कूप में मन फँस्यो, छबि जल तृषा बिचारी।

कढ़त मुबारक ताहि तिय अलक डोर सो डारि॥

चिबुक रूप रसरी अलक तिल सुचरस दृग बैल।

बारी बार सिंगार की सींचत मन मथ छैल॥

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