कृष्णा सोबती की कहानियाँ
बादलों के घेरे
भुवाली की इस छोटी-सी कॉटेज में लेटा,लेटा मैं सामने के पहाड़ देखता हूँ। पानी-भरे, सूखे-सूखे बादलों के घेरे देखता हूँ। बिना आँखों के झटक-झटक जाती धुंध के निष्फल प्रयास देखता हूँ और फिर लेटे-लेटे अपने तन का पतझार देखता हूँ। सामने पहाड़ के रूखे हरियाले में
सिक्का बदल गया
खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुँची तो पौ फट रही थी। दूर-दूर आसमान के पर्दे पर लालिमा फैलती जा रही थी। शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रखे और 'श्री...राम, श्री...राम' करती पानी में हो ली। अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कार किया,
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere