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जान कवि

1614 - 1664 | फ़तेहपुर, राजस्थान

सूफ़ी संत, नीतिकार और रासो-काव्य के रचयिता। ब्रजभाषा पर अधिकार। वस्तु-वर्णन के लिए दोहा और सोरठा छंद का चुनाव।

सूफ़ी संत, नीतिकार और रासो-काव्य के रचयिता। ब्रजभाषा पर अधिकार। वस्तु-वर्णन के लिए दोहा और सोरठा छंद का चुनाव।

जान कवि की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 20

परज्या कौ रक्षा करै सोई स्वामि अनूप।

तर सब कौं छहियाँ करै, सहै आप सिर धूप॥

सदा झूठहीं बोलिहैं, तिहि आदर घटि जाइ।

कबहू बोलै साँचु वहु, तऊ को पतियाइ॥

ताकौं ढील कीजिए ह्वै जु धरम को काजु।

को जानैं कल ह्वै कहा करिबो सो करि आजु॥

तीन भाँति के द्रुजन हैं पंडित कहत बिचित्र।

अप बैरी, बैरी सजन, पुनि द्रुजनन कौ नित्र॥

न्याव कोऊ पाइहै, परै लालची काम।

सोई साचे होत है, जाकी गँठिया दाम॥

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