जान कवि की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 20
परज्या कौ रक्षा करै सोई स्वामि अनूप।
तर सब कौं छहियाँ करै, सहै आप सिर धूप॥
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सदा झूठहीं बोलिहैं, तिहि आदर घटि जाइ।
कबहू बोलै साँचु वहु, तऊ न को पतियाइ॥
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ताकौं ढील न कीजिए ह्वै जु धरम को काजु।
को जानैं कल ह्वै कहा करिबो सो करि आजु॥
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तीन भाँति के द्रुजन हैं पंडित कहत बिचित्र।
अप बैरी, बैरी सजन, पुनि द्रुजनन कौ नित्र॥
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न्याव न कोऊ पाइहै, परै लालची काम।
सोई साचे होत है, जाकी गँठिया दाम॥
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