हरिव्यास देव की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 6
पूरन प्रेम प्रकास के, परी पयोनिधि पूरि।
जय श्रीराधा रसभरी, स्याम सजीवनमूरि॥
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अमृत जस जुग लाल कौ, या बिनु अँचौ न आन।
मो रसना करिबो करो, याही रस को पान॥
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तिहि समान बड़भाग को, सो सब के शिरमौर।
मन वच, क्रम सर्वद सदा, जिन के जुगलकिशोर॥
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निरखि-निरखि संपति सुखै, सहजहि नैन सिराय।
जीवतु हैं बलि जाउँ या, जग माँही जस गाय॥
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शुद्ध, सत्व परईश सो, सिखवत नाना भेद।
निर्गुन, सगुन बखानि के, बरनत जाको बेद॥
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