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भामह

काव्यशास्त्र के सुप्रसिद्ध आचार्य, काव्यालङ्कार के रचियता।

काव्यशास्त्र के सुप्रसिद्ध आचार्य, काव्यालङ्कार के रचियता।

भामह की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 72

‘यह सुरक्षित कुसुम ग्रहण करने योग्य है; यह ग्राम्य है, फलतः त्याज्य है; यह गूँथने पर सुंदर लगेगा; इसका यह उपयुक्त स्थान है और इसका यह’—इस प्रकार जैसे पुष्पों को भली-भाँति पहचानकर माली माला का निर्माण करता है, उसी प्रकार सजग बुद्धि से काव्यों में शब्दों का विन्यास करना चाहिए।

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व्याकरण रूपी सागर के सूत्र जल हैं, वार्तिक आवर्त्त (भँवर) हैं, पारायण (भाष्य, कौमुदी आदि) रसातल हैं, धातुपाठ, उणादि, गणपाठ आदि ग्राह हैं। (उस व्याकरण रूपी सागर) को पार करने के लिए चिंतन-मनन विशाल नाव है। धीर व्यक्ति उसके तट को लक्ष्य बनाते हैं और बुद्धिहीन व्यक्ति उसकी निंदा करते हैं। समस्त अन्य विद्या रूपी हथिनियाँ उसका निरंतर उपभोग करती हैं। इस दुरवगाह्य व्याकरण रूपी सागर को बिना पार किए कोई व्यक्ति शब्द रूपी रत्न तक पहुँचने में समर्थ नहीं हो पाता।

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काव्यप्रणयन की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को व्याकरण का ज्ञान अर्जित करने का प्रयत्न करना चाहिए।

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दूसरे कवियों के शब्दप्रयोगों को देखकर; जो काव्यप्रणयन किया जाता है, भला उसमें कहाँ आनंद मिलेगा?

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सत्यकाव्य का प्रणयन पुरुषार्थचतुष्टय एवं कलाओं में निपुणता, आनंद और कीर्ति प्रदान करता है।

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Recitation

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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