बलराज साहनी का सिनेमा सिनेमा लेखन
पृथ्वीराज और नाट्यकला
पृथ्वीराज सन् 1926 के लगभग अभिनय की भूख मिटाने के लिए अपने प्यारे शहर पेशावर को छोड़कर बंबई आए थे। यह वह ज़माना था जब पंजाब का मध्यम वर्ग अपनी भाषा, अपने रहन-सहन और साहित्य के प्रति विरक्त था। उस समय आज की तरह पंजाबी भाषा में अच्छे नाटक और उपन्यास नहीं
विमल राय
मैंने विमल राय को सन् 1946 में पहली बार देखा, जब मैं 'इप्टा' (इंडियन पीपल्स थिएटर) की बंबई शाखा का जनरल सेक्रेटरी था। उन दिनों कुल-हिंद इप्टा, बंगाल द्वारा निर्मित फ़िल्म 'धरती के लाल' बन रही थी। इस फ़िल्म के निर्देशक ख़्वाजा अहमद अब्बास थे। शंभू मित्र,
अपने फ़िल्मी-जीवन की पचीसवीं वर्षगाँठ पर
फ़िल्मों में काम करते हुए मुझे पच्चीस वर्ष हो गए हैं। अब तक मैं सवा सौ से ऊपर फ़िल्मों में काम कर चुका हूँ। ऐसे मौक़े पर जशन मनाना बहुत उपयुक्त और सौभाग्यशाली समझा जाता है। लेकिन पता नहीं क्यों, मेरे दिल में जश्न मनाने का उत्साह नहीं है। कॉलेज के
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere