अश्विनी कुमार दत्त के उद्धरण


प्रेम का सर्वप्रधान धर्म है—स्वार्थरहित होना। प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहाँ स्वार्थपरता है वहाँ प्रेम नहीं है।
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