अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ाँ के उद्धरण

शहीदों के मज़ारों पर लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशां होगा।
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क्या मेरे लिए इससे बढ़कर कोई इज़्ज़त हो सकती है। कि सबसे पहला और अव्वल मुसलमान हूँ जो आज़ादिये वतन की ख़ातिर फाँसी पा रहा है?
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शहीदाने वतन का ख़ून इक दिन रंग लाएगा
चमन में फूट निकलेगा यह बरगे अर्गवाँ होकर।
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न कोई इंगलिश न कोई जर्मन न कोई रशियन न कोई टर्की, मिटाने वाले हैं अपने हिंदी जो आज हमको मिटा रहे हैं।
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