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तबतें और न कछु सुहाई

tabten aur na kachhu suhai

चतुर्भुजदास

अन्य

अन्य

चतुर्भुजदास

तबतें और न कछु सुहाई

चतुर्भुजदास

और अधिकचतुर्भुजदास

    तबतें और कछु सुहाई।

    सुंदर स्याम जबहि तैं देखे खरिक दुहावत गांइ॥

    आवति हुती चली मारग सखि! हौं अपने सतभाई।

    मदन गोपाल देखिके इकटक रही ठगी मुरझाइ॥

    बिसरी लोक-लाज गृह-कारज बंधु पिता अरु माइ।

    दास चतुर्भुज प्रभु गिरिधर तनु-मनु लियौ चुराइ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप कवि : चतुर्भुजदास (पृष्ठ 45)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : चतुर्भुजदास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2009

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