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सुन सुन रे मन कहल मोर

sun sun re man kahal mor

संत शिवनारायण

अन्य

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संत शिवनारायण

सुन सुन रे मन कहल मोर

संत शिवनारायण

और अधिकसंत शिवनारायण

    सुन सुन रे मन कहल मोर।

    चेत करहु घर जहां तोर॥टेक॥

    मोह भया भ्रम जल गंभीर।

    बहै भयावन रहै थीर॥

    लहरि झकोरै लै दूसरि आस।

    काल करम कर निकट बास॥

    आपु देखि पंथ धरु सबेर।

    का भुलि-भुलि जग करु अबेर॥

    सांझ समै जब घेरु अंधार।

    तब कैसे जइब उतर पार॥

    फिर पछतइव समै जात।

    चलहु आपन घर मानहु बात॥

    देश आपना आपन जोग।

    जहाँ बसहिं सब संत लोग॥

    अपन-अपन घर करत बास।

    केहु काहुक करत आस॥

    शीवनरायन शब्द बिचारी।

    अनंत सखिन संग रचु धमारी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 305)
    • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
    • रचनाकार : संत शिवनारायण
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1981

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