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हंसा करो पुरातन बात

hansa karo puratan baat

कबीर

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हंसा करो पुरातन बात

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    हंसा करो पुरातन बात।

    कौन देस से आया हंसा, उतरना कौन घाट।

    कहाँ हंसा बिसराम किया है, कहाँ लगाये आस॥

    अबहीं हंसा चेत सबेरा, चलो हमारे साथ।

    संसय-सोक वहाँ नहिं ब्यापै नहीं काल कै त्रास॥

    हिआँ मदन-बन फूल रहे हैं, आवे सोहँ बास।

    मन भौंरा जिहँ अरुझ रहे हैं, सुख की ना अभिलास॥

    हंस, अपनी पुरानी कहानी सुनाओ। तुम किस देश से आए हो, हंस, और किस घाट उतरोगे। तुम कहाँ आराम करोगे, हंस, और तुम्हें किसकी खोज है। अभी सवेरा है, हंस, अब भी चेत जाओ और हमारे साथ चलो। एक ऐसी जगह है जहाँ शोक और संशय का नाम नहीं है, मौत का डर नहीं है। वहाँ कामदेव का वन फूल रहा है ओर ब्रह्म के साथ जीव की अभिन्नता की सुगंध फैली हुई है; वहाँ मन का भँवरा मस्ती में गुँजन कर रहा है। इसके बाद किसी और सुख की अभिलाषा नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 37)
    • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
    • संस्करण : 2010

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