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मंगलाचरण

manglacharan

चंदबरदाई

अन्य

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चंदबरदाई

मंगलाचरण

चंदबरदाई

जटा जूट बंधं।

ललाटीय चंदं।

विराजादि छंदं।

भुजंगी गलिंदं।

सिरोमाल लद्दं।

गिरिज्जा अनंदं।

सुरे सिंग नद्दं।

उणो गंग हद्दं।

रणो वीर मंद्द।

करी चम्म छद्दं।

करे काल षद्दं।

चष्षे अग्गि षंद्द।

पुलै यद्दि जद्दं।

जयो जोग' सद्दं।

घटा जाणि भद्दं।

जुरे काम तद्दं।

हरे त्राहि वद्दं।

रचे मोह कद्दं।

बचे दूरि दंदं।

नटे भेष रिंद।

नमो इस इंदं।

जो जटा-जूट बाँधे हुए हैं, और जिनके ललाट पर चंद्रमा है, मैं उनको वंदन करता हूँ। भुजंगिनी जिनके गले में है, और सिरों की माला जिनके गले में लदी हुई है, जो गिरिजा को आनंद देने वाले हैं, जो शृंग का निनाद करते हैं, जो गंगा को पवित्र करने वाले हैं, जो रण में वीरता के मद वाले हैं, जो गज-चर्म के आच्छादन वाले हैं, काल जिनका खाद्य है, जिनके नेत्रों में अग्नि की ज्वाला होती है, जब-जब प्रलय होती है, अनाहत नाद (जो भाद्रपद की घटा का होता है) के जो विजेता हैं, जिन्होंने काम को तत्काल जलाया था। हे हर, मैं ‘त्राहि' कहता हूँ। जो मोह का नाश करने वालों पर अनुराग करते हैं, जिनसे द्वंद्व दूर रहता है और जो नट के वेष में रिंद हैं, उन महेश को नमस्कार करता हूँ।

स्रोत :
  • पुस्तक : पृथ्वीराज रासउ (पृष्ठ 4)
  • रचनाकार : चंदबरदाई
  • प्रकाशन : साहित्य-सदन चिरगाँव (झाँसी)
  • संस्करण : 1963

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