Font by Mehr Nastaliq Web

प्रितयम एक बार गृह आऔ

priyatam ek bar grih aaau

रत्नावली

अन्य

अन्य

रत्नावली

प्रितयम एक बार गृह आऔ

रत्नावली

और अधिकरत्नावली

    प्रितयम एक बार गृह आऔ।

    अनुचित उचित करयौ हो कबहू-ताहि समुझि समुझाऔ॥

    तव वियोग अकुलात हीय अति, धीरज आइ बँधाऔ।

    सह्यो जात दुसह दुःख एतो, दरस दया दरसाऔ॥

    दिन कितेक नाथ अब बीते, नाहिं मोरि सुधि लीनी।

    सुजन पाछिली प्रीति रावरी, अहह परी कीकिमि झिनी॥

    रूठि गए मो बैन सुनत, जन-कहत सुनत सकुचाऊँ।

    का अब करों अब खोजों कितहू खोज पाऊँ॥

    अमित प्रीति परतीति-भोग तव, पाइ रही हों भोइ।

    सपने हूँ कबहुँ हों जानी, दसा मोरि अस होइ॥

    भूलि जाउँ हों सबै परेखो, बीती ताहि बिसारों।

    भाग सराहों रतन आपनो, जो तव चरन निहारों॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रत्नावली (पृष्ठ 52)
    • संपादक : वेदव्रत शास्त्री
    • रचनाकार : रत्नावली
    • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
    • संस्करण : 1990

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए