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पाहि-पाहि उर अंतरजामी

pahi pahi ur antarjami

सहचरिशरण

अन्य

अन्य

सहचरिशरण

पाहि-पाहि उर अंतरजामी

सहचरिशरण

और अधिकसहचरिशरण

    पाहि-पाहि, उर अंतरजामी, हरन अमंगल ही के।

    ‘सहचरिसरन’ बिनय सुनि कीजै, बारिधि कृपा-अमी के।

    दुस्तर दुसह दुखद अबिचारू, बिफल होहिं खल जी के।

    जिमि सिसुपाल कुचाली-जी के परे मनोरथ फीके॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरीसार (पृष्ठ 247)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 1939

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