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जग ये दोऊ खेलत होरी

jag ye do.uu khelat horii

धनी धरमदास

अन्य

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धनी धरमदास

जग ये दोऊ खेलत होरी

धनी धरमदास

और अधिकधनी धरमदास

    जग ये दोऊ खेलत होरी।

    माया ब्रह्मबिलास करत हैं, एक से एक बरजोरी॥

    सचिदानन्द सरूप अखंडित, व्यापक है बस ठौरी।

    हिये नैन से परख परो जेहि, जोति समाय रहो री॥

    जोबन जोर नैन सर मारते, ठहर सकै को कोरी।

    मदत प्रचंड उठै चमकारी, कामा करी चित चोरी॥

    निरगुन रूप अमान अखंडित, जा में गुन बिसरो री।

    माया मुत्त अनंद कियो है, सबहि में अमर भरोरी॥

    कारन सूछम स्थूल देंह धरि, भक्ति हेत तृन तोरी।

    धर्मनि बिना दरस गुरु मूरत, कस भव पार भयोरी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 255)
    • संपादक : जगजीवन राम
    • रचनाकार : धरमदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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