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गोधन पाछें पाछें आवत नटवर

godhan pachhen pachhen aawat natwar

गोविंद स्वामी

अन्य

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गोविंद स्वामी

गोधन पाछें पाछें आवत नटवर

गोविंद स्वामी

और अधिकगोविंद स्वामी

    गोधन पाछें पाछें आवत नटवर वपु काछें।

    छुरित गोरज अलक छवि मोपे बरनी जाई—

    कनक कुंडल लोल लोचन मोहन बेनु बजावत॥

    प्रिय सखा भुज अंस धरें नील कमल दच्छिन कर मधुव्रत—

    स्रुति देत छंद मंद मधुरें गावत।

    'गोविंद' प्रभु बदन चंद जुवती जन नेंन चकोर—

    रूप सुधा पान करत काहे जिय भावत॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गोविंद स्वामी (पृष्ठ 152)
    • संपादक : कंठमणि शास्त्री 'विशारद'
    • रचनाकार : गोविंद स्वामी
    • प्रकाशन : कंठमणि शास्त्री 'विशारद', विद्याविभाग, कांकरोली, राजस्थान
    • संस्करण : 1951

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