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रास पंचाध्यायी (तीसरा अध्याय)

ras panchadhyayi (tisra adhyay)

नंददास

अन्य

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नंददास

रास पंचाध्यायी (तीसरा अध्याय)

नंददास

और अधिकनंददास

    कहन लगीं अहो कुंअर कान्ह ब्रज प्रगटे जब तें।

    अवधि भूत इंद्रादि इहां क्रीड़त हैं तब तें॥

    नैन-मंदिबो महाशस्त्र ले हांसी-हांसी।

    मारत हौ कित सुहथ नाथ बिनु मोल की दासी॥

    बिष तैं जल तैं ब्याल अनल तैं चपला झर तैं।

    क्यों राखी, नहिं मरन दई नागर, नगधर तैं॥

    जब तुम जसुदा-सुबन भये पिय अति इतराने।

    विश्व कुसल के काज बिधिहिं बिनती कै आने॥

    अहो मति, अहो प्राननाथ यह अचरज भारी।

    अपननि जौ मरिहौ करिहो काकी रखवारी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप कवि : नंददास (पृष्ठ 62)
    • संपादक : सरला चौधरी
    • रचनाकार : नंददास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2006

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