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छिताईवार्ता (नीति वर्णन)

chhitaiwarta (niti warnan)

नारायणदास

नारायणदास

छिताईवार्ता (नीति वर्णन)

नारायणदास

आसा बैरी कीजियै ठाकुर कीजै मित्त।

खन तातौ खन सीयरौ खन बैरी खन मित्त॥

ठाकुर खन बैरी खन मित्त।

थिरु रहै ठाकुर कौ चित्त।

आप सुहाती सब कछु करै।

पर दुख बेदन चित्त धरै॥

सिंघु सपु आपनौ होई।

ठाकुर मिंत कहौ जनि कोइ॥

जैसो खलटकटाई (करकंटाई?)पान।

त्यौं ठाकुरु जानिजे (जानिये) नियान।

पलटत ही कर कंटो डसै।

यह मति गति ठाकुर चित बसै॥

तूठौ करै दलिद्र की हानि।

रूठौ मारि बहावै पानि।

यह सोचत उठि डेरै गयौ।

भौ दिन अस्तु सूरु अंथयौ॥

बैरी से कभी कोई आशा करनी चाहिए और ठाकुर को मित्र करना चाहिए, क्योंकि ये एक क्षण तप्त तो दूसरे क्षण शीतल, और एक क्षण बैरी तो दूसरे क्षण मित्र होते रहते हैं।

ठाकुर एक क्षण वैरी और दूसरे क्षण मित्र होता है उसका चित्त स्थिर नहीं रहता; अपना मनमाना वह सब कुछ करता है; किंतु सेवक या आश्रित के दुःख की वेदना को चित्त में कभी नहीं लाता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : छिताईवार्ता (पृष्ठ 49)
  • संपादक : माताप्रसाद गुप्त
  • रचनाकार : नारायणदास
  • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
  • संस्करण : 1958

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