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बाज़ार वर्णन

bazar warnan

मान कवि

अन्य

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मान कवि

बाज़ार वर्णन

मान कवि

और अधिकमान कवि

    कहूं कहूं हट्ट परे टकसाल सु गाररहि सोवन रूठ सु झाल।

    सबै वर संचय तोलि तुलानि, जितें तित चित्र अनोपम जांनि॥

    कितेइ सरापनि हट्ट सुभासि, दिपंन दिनार रूपैयन राशि।

    सुथैलिय अग्ग धरै बदरांनि सुछंदत भेदत लेत पिछानि॥

    किते तहँ कुंदन रूप सुनार, सुगारत यंत्रनि कट्टत तार।

    गढ़े बहु भूषन भंति बनाउ, जिगंमिग हीर जरंत जराउ॥

    किते बहु मौलकि बस्त्र बजाज, मंडे जर बाफ मुखंमल साज॥

    मसद्यर नारीय कुंजर मिश्रु, सुभैसी कला तदु मास सहश्रु॥

    तनो मुख सूफ पटोर दर्याइ, खीरोदक चेंनी पितांबर ल्हाइ।

    मनो मुख पांमरी साहिबी पाठ, हीरा गर सेंनिय हीर सगाढ़॥

    भरूच्छिय भैरव सारू सभार, सुसी मह मुंदी सु सिंद लिसार।

    झुनांटु करी श्री साय अटांन, सेला पंचतोरिय खासे सुजांन॥

    मलंमल साहि चौतार दुतार, उपै इकतार सु धौत अपार।

    सु सारिय चौरि से रंग रंगील, दिखांवहि आद्य दलाल असील॥

    कितेइ कंठारिय मंडि कठार, प्रधांन कृयांण अनंत प्रकार।

    सु श्री फरू एलचि लोंग सुपारि, सचे घन हिंगरू साद सुधारि॥

    मृगंमद केसरि और कपूर, कालागरू चंदन कुंकु सिंदूर।

    रसंचिस गंध कसं हरतार, हरीचि गरू त्रिफलानि सभार॥

    सुखारिक दाख भखानै बदाम, घनै पिसता अखरोट सु नांम।

    चिरोंजिय सक्कर पिंड खजूरि, सिता बहु भांति सु संचय भूरि॥

    सु मस्तकि लीलि मजीठ अफींम, यवांनी पंच जायफरू सीम।

    ठहे बहु ठट्ट सु गंठिन ठाइ, कितै इक आनन नाउ कहाइ॥

    कितेकन हट्टिय हट्ट कनिंक, बहू बिधि तंदुल गौंह चनंक।

    मसूररु मुंगरु मौठ सु माख, घनै जव झारिरु दारि सभाख॥

    घनै घृत तैलरु ईख अलेख, सबै रस हींग तिजारे विशेष।

    सुवेचहि सच्च तराजुनि तोल, सबैं मुख बोलत अमृत बोल॥

    किते इकदोइ निहट्ट इकट्ठ, मंडै बहु भांति मिठाइय मिट्ठ।

    जलेबिय घेउर मुत्तयचूर, चिरौंजिय कोहलापाक सँपूर॥

    सु अमृति मोदक लाखण साहि, गिंदौरनि पैरनि गंज सु चाहि।

    पतासे हे समि खंड पंगेरि, तिनंगनि केसरिपाक सु हेरि॥

    साबूनिय रेवरि भाठिय सोठ, फबैतिय फैंननि लग्गत ओठ।

    तपै घृत सौरभ मध्य कटाह, करें खंड चासनि वास सराह॥

    किते इन मोरनि हट्ट अमांन, प्रबेचहिं पाके अडागर पान।

    गठे बहु बीरिय बीटक बुद्ध, सुपारिय क्वाथरु चूरन शुद्ध॥

    कितै तह गंध सुंगधिय तेल, जुही करनी मुरगेल पंचेल।

    सुकेतिक केवरा कुंद रिजाइ, गुलाब सुमालति गंध सुहाइ॥

    घनै अतरादिक सोंधे जनादि, कुमंकुमा नीर किए कुसुमादि।

    सु केसरि चंदन चोवनि अग्ग, महं महि थान बज़ार सुमग्ग॥

    किती तहँ मालनि फूलनि माल, गुहैं कर चौसर झाक झमाल।

    सु कंचुकि गिंदुक कंकन भंति, विलोकहि वांक करें मन खंति॥

    किते तहं गुंड गरीनि के गंज, सिंघारे अनार सियाफल संज।

    जंभीरिय सेव सदाफल जानि, पके बहु बेर हिमंत बखानि॥

    किते ऋतु ग्रीषम राइनि आम, केरा सहतूतरु दाख सकाम।

    पके खरबूजे सु अमृत खांन, मडै घन मेवा कहैं कत-मांन॥

    मंडै ऋतु पावस पावस जात, घनै सरदा सरदादि सुहात।

    ऋतु ऋतुवंत रसाल विवेक, मंडे तरकारिय भांति अनेक॥

    किते पटवानि के हट्ट प्रधांन, गंठै बहु भूषन पाट विज्ञान।

    किते करि दंत चढ़ाइ खरादि, उतारहिं नूटक चंग प्रसाद॥

    कितै तहं बौहरे आसुर वृंद, करैं बहु वस्त्र व्यापार समुंद।

    कराहिय कंटक लोह कुठार, सचै गुजरातिय कग्गर तार॥

    लसें कोटवालि सु चौतरे उंच, बैठे कोटवाल करैं खल खंच।

    निवेरहिं सत्य-असत्य सु न्याउ, बहू चर वृंदनि सेवत पाउ॥

    कहूं सु जगातिय लेत जगाति रहैं रखवारि किते दिन-राति।

    गहैं कर षौंचिय इंच सु दांन दियावहि श्री महारानु सु आंन॥

    सुजी भरभुं जे कंसार ठंठार, धरें सिकली गर सस्त्र सुधारि।

    किते रंगरेज रगैं बहु रंग, सु चूंनरि पाग कसुंभिय रंग॥

    किते इक मोचिय बाजि पलांन, रचैं शूरवार सु पाइनि त्रान।

    जिती जगं जाति तिते तिन कर्म्म, सबैं सु, लोक बढ़ें धन धर्म्म॥

    किते मन हट्टिय कंगहि काच, बहू विधि मुंदरी हार सु वाच।

    पंना नग मुत्तिय लाल प्रवाल, करी रद कुंपिय बिंदुलि भाल॥

    किते षट दर्शन आश्रम ऐंन, सा लाजल वेग समेत सचैंन।

    लहैं बहु दांनरू मांन भुगत्ति, सबै जग सेवत योग युगत्ति॥

    कहूं कठियार क्रीणंत कबार, भरे केउ प्रोहन इंधन भार।

    अलेखहि लादे पशूनि सुचार, करें क्रय घासिय घास अपार॥

    कहूं नट नच्चत जूझत मल्ल, कहूं-कहुं पिक्खन व्याल नवल्ल।

    कहूं बर पंडित बोलत बाद, कहूं निपजंत नए सु प्रसाद॥

    कहूं तिय सोहब गावति गीत, बजैं डफ ढोल मृदंग पुनीत।

    कहूं नृप दासि बडारनि झुंड, सजै तनु सार सिंगार सु मंड॥

    कितेई सौदागर अश्व सिंगारि, दिखांउन आंनहि राज दुआरि।

    बहू रंग चंचल वेग विग्यान, ततथेइ-थेइ सु नच्चत तांन॥

    किते उमराव हयग्गय सेन, किते बहु सेठरु साहस चैंन।

    किते पंशु वृंद किते नर नारि, मचैं बहु भीर बज़ार मंझार॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : राजविलास (पृष्ठ 48)
    • संपादक : भगवानदीन
    • रचनाकार : मान कवि
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
    • संस्करण : 1912

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