Font by Mehr Nastaliq Web

एक जात दोऊ एके रुख पर बैठ कहीं

ek jat dou eke rukh par baith kahin

देवीदास

अन्य

अन्य

देवीदास

एक जात दोऊ एके रुख पर बैठ कहीं

देवीदास

और अधिकदेवीदास

    एक जात दोऊ एके रुख पर बैठ कहीं

    एक से लगत देह हलकी भारी तै।

    एक ही बरन एक ठौर बसु बास हुतौ

    अन्तर रती नहु तो देखौ परकारी तै।

    को हो या कहत कौन कोइल कवन काक

    मूक ह्वै रह्यौ कूर करी चूक भारी तै।

    देवीदास कहै अनबोले ही भरम हुतौ

    बाइस बलातकारी बोल बाट पारी तै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : राजनीति के कवित्त (पृष्ठ 111)
    • संपादक : महेंद्रनाथ दुबे
    • रचनाकार : देवीदास
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए