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सुरसरि मैया तेरे विमल सलिल बीच

surasari maiya tere wimal salil beech

लेखराज

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सुरसरि मैया तेरे विमल सलिल बीच

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    सुरसरि मैया तेरे विमल सलिल बीच,

    परत भ्रमर जो लगी है शोभा सरसन।

    ताकी उपमा के कहिबे को जे सुकवि वर,

    शेष शारदादि हेरि-हेरि हारे बरसन।

    ताहि मतिमंद लेखराज धौं कहै गो कहा,

    तदपि सु यथामति कहत है डरसन।

    मानौं छीर सर सन सैन कृत हरि सन,

    छूटि चल्यो कर सन वहि है सुदरसन॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गंगाभरण (पृष्ठ 17)
    • रचनाकार : लेखराज मिश्र
    • प्रकाशन : कृष्णविहारी मिश्र

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