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ग्रीषम की गजब धुकी है धूप धाम-धाम

grisham ki gajab dhuki hai dhoop dham dham

ग्वाल

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ग्वाल

ग्रीषम की गजब धुकी है धूप धाम-धाम

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    ग्रीषम की ग़ज़ब धुकी है धूप धाम-धाम,

    गरमी झुकी है जाम-जाम अति तापनी।

    भीजैं खस-बीजन झुलैहैं ना सुखात स्वेद,

    गात सुहात, वात दावा सी डरापिनी।

    ‘ग्वाल’ कवि कहै, कोरे कुंभन तें, कूपन तें,

    लै-लै जलधार बार-बार मुख थापिनी।

    जब पियो, तब पियो, अब पियो, फेर अब,

    पीवत हू पीवत बुझै प्यास पापिनी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रसरंग (पृष्ठ 147)
    • संपादक : रामानंद शर्मा
    • रचनाकार : ग्वाल
    • प्रकाशन : रामपुर रज़ा लाइब्रेरी
    • संस्करण : 2006

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