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किधौ मनमथ के ए रथ के सुचक्र चले

kidhau manmath ke e rath ke suchakr chale

सूरति मिश्र

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सूरति मिश्र

किधौ मनमथ के ए रथ के सुचक्र चले

सूरति मिश्र

और अधिकसूरति मिश्र

    किधौ मनमथ के रथ के सुचक्र चले,

    तिनकी की लीके उर भू पै जानी तौन है।

    किधौ मैन ठग की गली भली ठगिवे की

    किधौ रूप-नदी तीन धार कियौ गौन है।

    'सूरति' सुकवि देखि मोहे मन मोहन जू

    याते मैं हूँ जानी, एई मोहिबे के मौन हैं।

    एक वली सब ही कौ बस करि राखतु है,

    त्रिबली करै जो बस अचरज कौन है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूरति मिश्र का अज्ञात काव्य (पृष्ठ 98)
    • संपादक : रामगोपाल शर्मा दिनेश
    • रचनाकार : सूरति मिश्र
    • प्रकाशन : रौशनलाल जैन एंड संस
    • संस्करण : 1973

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