Font by Mehr Nastaliq Web

अजामील पापी हौ सुरापी ब्रह्म-वंश बीच

ajamil papi hau surapi brahm wansh beech

नवनीतलाल चौबे

अन्य

अन्य

नवनीतलाल चौबे

अजामील पापी हौ सुरापी ब्रह्म-वंश बीच

नवनीतलाल चौबे

और अधिकनवनीतलाल चौबे

    अजामील पापी हौ सुरापी ब्रह्म-वंश बीच,

    पास हू गयौ कभू पुन्य परिछाँही के।

    सदनों कसाई का कमाई धर्म ही की करी,

    तामैं गति पाई भक्त-भाजन भुराही के॥

    इंद्र अभिमानी कामी सुरपुर राज दियौ,

    चंद्र गुरु-द्रोही भयौ उपमा अवगाही के।

    कौन-कौन बातन की 'नीत' विपरीत कहै,

    जानी जदुनाथ! आप गाहक गुनाही के॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 477)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : नवनीत चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए