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देव नर किन्नर कितेक गुन गावत, पै

dew nar kinnar kitek gun gawat, pai

पद्माकर

अन्य

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पद्माकर

देव नर किन्नर कितेक गुन गावत, पै

पद्माकर

और अधिकपद्माकर

    देव नर किन्नर कितेक गुन गावत, पै,

    पावत पार जा अनंत गुनपूरे को।

    कहै ‘पद्माकर’ सुगाल के बजावत ही,

    काज करि देत जन-जाचक ज़रूरे को॥

    चंद की छटान-जुत पन्नग-फटान-जुत,

    मुकुट विराजै जटाजूटन के जूरे को।

    देखो त्रिपुरारि की उदारता अपार जहाँ,

    पैये फल चारि फूल एक दै धतूरे को॥

    अनंत गुणों से पूरिपूर्ण भगवान शिव के गुणों का पार या अंत नहीं हैं। उनके गुण अनंत, अपार एवं अवर्ण्य हैं। कवि पद्माकर कहते हैं कि यदि कोई भक्त थोड़ी-सी प्रार्थना करते हैं, तो वे ऐसे याचक-भक्तों का कार्य शीघ्र ही संपन्न कर देते हैं। शिव के सिर पर लंबी-लंबी जटाओं का जूड़ा सुशोभित है, उसके साथ ही चाँदनी की छटा से युक्त चंद्रमा तथा सर्पों के फणों की शोभा भी शोभित है। ऐसे भगवान शंकर की अपार उदारता देखिए कि उनके ऊपर एक धतूरे के फूल को भक्ति-भावना से अर्पित करने से ही वे धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों का फल प्रदान कर देते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पद्मावत पंचामृत (पृष्ठ 225)
    • संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
    • रचनाकार : पद्माकर
    • प्रकाशन : श्री रामरत्न पुस्तक भवन, काशी
    • संस्करण : 1992

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