Font by Mehr Nastaliq Web

अंग में अनंग की उमंग उमगाई परै

ang mein anang ki umang umgai parai

ग्वाल

अन्य

अन्य

ग्वाल

अंग में अनंग की उमंग उमगाई परै

ग्वाल

अंग में अनंग की उमंग उमगाई परै,

रंग-रंग कोककला कौतुल अपारैं हैं।

बालम कों बीरी पर बीरी दै खवावत है,

बालम कों बीरी आप खाय बार-बारैं हैं।

‘ग्वाल’ कवि गोरी कभूँ हँसै, कभूँ बतराय,

तामें दंत-दुति दरसात सो उचारैं हैं।

मानो चारु चंद माँहि चमकत्त चपला है,

चपला में हीरे की कनीन की कतारैं हैं॥

स्रोत :
  • पुस्तक : रसरंग (पृष्ठ 45)
  • संपादक : रामानंद शर्मा
  • रचनाकार : ग्वाल
  • प्रकाशन : रामपुर रज़ा लाइब्रेरी
  • संस्करण : 2006

संबंधित विषय

यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY