Font by Mehr Nastaliq Web

यूँ ही कुछ चलते-चलते

yoon hi kuch chalte chalte

एन.पी. सिंह

अन्य

अन्य

एन.पी. सिंह

यूँ ही कुछ चलते-चलते

एन.पी. सिंह

और अधिकएन.पी. सिंह

    अब सच की परछाइयों से भी

    डराने लगे हैं लोग।

    गलित परंपराओं की सड़ाँध में बैठे,

    ख़ुशबुओं का स्वप्न दिखाने लगे हैं लोग।

    ठूँठे दरख़्तों की लकीरें दिखा-दिखा,

    साये का एहसास कराने लगे हैं लोग।

    नपुंसक आस्थाओं के तेवर दिखा-दिखा

    क्रांति का छलना रचाने लगे हैं लोग।

    सूखे हुए चेहरों, धँसी आँखों को बयाँ कर,

    अपना ही आशियाँ सजाने लगे हैं लोग।

    पंथ और जाति का शोला लिए हुए,

    सद्भाव का घरौंदा बनाने लगे हैं लोग।

    झोंपड़ियों की लौ को रौशनी का भय दिखा,

    सरेआम दीवाली मनाने लगे हैं लोग।

    उठती हुई सिसकियों में पीड़ा का ज़िक्र कर,

    झूठी उम्मीद दिखाने लगे हैं लोग।

    घुटने सने हुए हैं कीचड़ में जिनके यारों,

    उपदेश स्वच्छता का पढ़ाने लगे हैं लोग।

    हैं हाथ रँगे हुए दरिंदगी के ख़ून से,

    मनुजता की दुकानें चलाने लगे हैं लोग।

    जिनको पता नहीं अपने ‘वजूद’ का,

    ‘संस्कृति’ की ठेकेदारी चलाने लगे हैं लोग।

    शहनाइयों का स्वर समझकर यह बदनसीब,

    अपने ही मर्शिया की धुन बजाने लगे हैं लोग।

    बेईमान अभिव्यक्तियों से देकर के छलावा,

    जलती मशालें भी बुझाने लगे हैं लोग।

    पहचान संवेदना के सौदागरों को तू,

    अस्तित्व की नाव डुबाने लगे हैं लोग।

    उठो, जागो, मेरे देशवासियो!

    टकों पर देश लुटानहे लगे हैं लोग।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द! कुछ कहे-अनकहे से... (पृष्ठ 140)
    • रचनाकार : एन.पी. सिंह
    • प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए