ये एक रात का साया है

ye ek raat ka saya hai

प्रकृति करगेती

प्रकृति करगेती

ये एक रात का साया है

प्रकृति करगेती

ये एक रात का साया है

और भूख ने घेरा है

दूर वादियों से भेजे हैं

आवाज़ के नगीने

जो कानों के हवाले

यूँ होते हैं

कि जैसे राशन मिला हो उन्हें

बड़ी तन्हा-सी ख़ुराक है

जिसे बाँटने की ख़्वाहिश में

कई-कई दफ़ा

तस्वीर बना यूँ छुपाया है

जैसे मिटाई हों

ताल से परछाइयाँ

ये एक रात का साया है

और सवालों ने घेरा है

एक खिड़की के बारे में सोचा है

एक दराज़ के बारे में भी

एक किताब ज़रूर रखी होगी वहाँ

शायद एक पन्ना भी मुड़ा हुआ हो

सोचती हूँ कि

उसके मुड़े हुए होने की उम्र क्या होगी?

कुछ जान लेने की उम्र क्या होगी?

क्या वह इलहाम अभी भी ज़िंदा होगा?

या उसी का सिरा पकड़

कोई नया पन्ना मोड़ा होगा?

और मुमकिन होने की छोटी-सी फ़ेहरिस्त में

वो खिड़की, वो दराज़

वो पन्ना, वो किताब

कभी निकलेंगे क्या

सपनों से सिरहाने की ओर?

ये एक रात का साया है

और एक धुन ने घेरा है

मैंने सुना है कि

नींद में बुदबुदाओ तो

पहाड़ गूँजते हैं?

और कहते हैं कि

जंगलों की आग

सूखे पत्तों पर गिरी

जुनून की चिंगारियों से बुझती है

ये अफ़वाह भी है कि

चमोली का भूकंप असल में

एक शाइर का इज़हार था

जो अकेलेपन को प्यार मान बैठा

और धरती को अपनी जागीर मान

कपकोट की ज़मीन को

कर आया हवाले भूस्खलन के

बहरहाल,

अब ये एक रात का साया है

और धड़कन को भूल जाने की इच्छा का मारा है

साँस को आदतों में शुमार करने का

एक हिदायत भरा ख़त मिला है

और मुझसे कहा गया है कि

ख़त के जवाब में

मैं सच्चे मन से लिख भेजूँ कुछ ऐसी जवाबी चिठ्ठी :

“ठीक है। आज ही समझदारी की दवा का

परचा बनवाकर आती हूँ। आप चिंता मत करना।

रात के साये का वक़्त होते ही एक खा लूँगी।

—आपकी प्यारी

अवचेतना”

तो,

ये एक रात का साया है

और धुँधलके ने घेरा है...

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रकृति करगेती
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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