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यशोदा की बेटी

yashoda ki beti

आभा बोधिसत्व

अन्य

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आभा बोधिसत्व

यशोदा की बेटी

आभा बोधिसत्व

और अधिकआभा बोधिसत्व

     

    एक

    मैं यशोदा की वह बेटी 
    जिसे न नंद बाबा ने बचाया न वसुदेव ने
    दोनों पिता थे और दोनों ने मिल कर मारा मुझे
    यह तो अच्छी बात नहीं

    सोती रही यशोदा माता
    उसे तो यह भी नहीं पता 
    उसने जना था बेटी या बेटा

    बेटे की रक्षा के लिए मारी गई बेटी
    बेटा जुग-जुग जिए
    बेटा राज करे
    कह-कह कर मारी गई बेटी

    कंस मामा ने तो बाद में मारा 
    उसके पहले हत्या की मेरी 
    मेरे पिता ने कंस मामा के हाथों में सौंप कर
    कंस मामा ने तो पत्थर पर पटका था केवल

    बेटी हूँ जान कर  
    गिड़गिड़ाई माँ देवकी
    मरी मैं 
    बचा तुम्हारा बेटा 
    जगत उद्भारक
    मैं मरी और मरती रही तब से अब तक 
    तब मरी कृष्ण के लिए
    अब मरती हूँ किसी
    मोहन, मुन्ना, दीपक के लिए
    इन्हीं कुल दीपकों के लिए
    बुझती रही मैं बार–बार
    ताकि रहे कुल रहे बढे उजियार 
    जीएँ-जागें गाती रही मैं 
    तब भी 
    मरती रही मैं...

    क्योंकि मैं बेटी थी तुम्हारी...
    मुझे तो मरना ही था
    तुम न मारते पिता तो कोई दुर्योधन मारता मुझे
    सभा के बीच साड़ी खींच
    मुझे तो मरना ही था

    दो

    मुझे ठिकाना मिला तो विन्ध्य की पहाड़ी में
    मथुरा, गोकुल द्वारका सबसे
    दूर रही मैं
    पर सोचती हूँ 
    क्या नंद बाबा मुझे 
    वसुदेव के हाथों ऐसे विदा कर रोए न होंगे भीतर ही भीतर
    क्या नंदबाबा ने सोचा न होगा यह न सोचे होगे
    कि विदा करूँगा बेटी को कन्यादान देकर
    किसी राजकुमार के संग

    माँ यशोदा कितना कलथी होगी
    यह जान कर कि 
    अपनी जनी को देख न पाई 
    बचा न पाई
    और मैं यशोदा की बेटी केवल मरती आई
    सूरदास ने गाई तेरे बेटे की लीला
    पर मेरी सुधि उन्हें न आई
    देवी बना कर किया प्रणाम और मुक्त हो गए

    मैं बची या न बची
    यशोदा की ही बेटी कहाऊँगी
    पिता तुम मारो या दुलारो
    मैं फिर-फिर आऊँगी

    स्रोत :
    • रचनाकार : आभा बोधिसत्व
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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