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याद

yaad

श्रुति कुशवाहा

अन्य

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और अधिकश्रुति कुशवाहा

    हम यादों से बने लोग हैं

    याद वो मिट्ठू है

    जो हमारे ही काँधे पर बैठ हमें चोंच मारता है

    याद इक नीरव रात की लंबी सड़क है

    जिसके किनारे लगे खंभों के बल्ब फ़्यूज़ हो गए हैं

    महबूब शाइर कहते हैं

    उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

    मैं शर्मिंदगी से इन अँधेरों को देखती हूँ

    यादों के अँधेरे जाने कितने सूरज निगल चुके

    अब तक सूर्यग्रहण की ये वजह वैज्ञानिकों ने क्यूंकर नहीं खोजी

    बशीर साहब ने फिर ये भी तो कहा है

    कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

    याद मेरे सीने में उट्ठा वो दर्द है

    जो बिल्कुल दिल के दौरे-सा लगता है

    लेकिन एकदम बेनतीजा

    डॉक्टर कहते हैं इत्मिनान रखिए

    हवा का दौरा था ज़रा टहल के निकल गई

    सीने में जो दिल की जगह हवा का दौरा हो

    ये बात दिल पे लेने वाली क्यूँ हो भला

    याद वो चाकू है

    जिससे सेब तो नहीं कटता

    उँगली कट जाती है

    अकल दाढ़ की तरह

    जिससे अकल ठाँय नहीं आती

    दर्द भरपूर होता है

    याद वो मनीप्लांट है

    अरमानों से जिसे चुराकर लगाते हैं

    लेकिन एक अदद सिक्का नहीं मिलता

    चोरी का पाप और सिर चढ़ जाता है

    याद मेरे ही मन की मेरे ख़िलाफ़ साज़िश है

    और मैं इस साज़िश में भागीदार हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रुति कुशवाहा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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