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विस्मृति

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अतुल

अन्य

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अतुल

विस्मृति

अतुल

और अधिकअतुल

    क्या बीत जाने से

    सचमुच बीत जाती है बात?—

    फिर दूर तलक फैले एक बंजर रेगिस्तान को

    याद नहीं रहता हो

    सालों पहले झुलसता जंगल

    किसी वीरान कँटीली झाड़ी को कभी विस्मृत हो जाता

    उसका पहला फूल

    रात के गहरे सन्नाटे में दिन की चहल का नहीं रहता भान कोई

    और दुपहर की नींद की बेला

    ठीक-ठीक रात के चौथे पहर का एहसास नहीं लाती

    मृत्यु की आहट गिनते धीमे बुढ़ापे

    को याद बचती नहीं होगी

    छलाँगते बचपन की

    जैसे अवसाद में डूबता मन मुस्कुराता हो

    बचकानी बेहयाइयों को ताड़ते

    अतीत की खिड़कियों में

    होता होगा ठीक-ठीक शायद ऐसा ही,

    तभी, कि शायद एक वक़्त के बाद

    मैं भुला दूँगा हर उस बात को

    एक वक़्त बीत जाने पर भूल जाऊँगा

    कि ठीक-ठीक मुझे तुम्हें भूलना है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अतुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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