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शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ

shishir mein bhige patton ki tarah shant rahna chahta hoon

नित्यानंद गायेन

नित्यानंद गायेन

शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ

नित्यानंद गायेन

बहुत छोटी-छोटी बातों पर

ख़ुश होना चाहता हूँ

इसलिए एकांत में और किसी दिन

बारिश में चौराहे पर भीगते हुए

मैं रोना चाहता हूँ...

दर्द के साझा होने पर

दोस्त जब पूछने लगे

बताओ—

उम्मीद क्या है!

किसी बच्चे की तरह उदासी छा जाती है मन पर

और पता नहीं ठीक इसी तरह

मैंने भी अपनी बातों से कितने लोगों को दी है उदासी,

दिया है अवसाद!

जीवन का अपना गणित है

जिस तरह मादक सुगंध और फूलों के रंग से

बदल जाता है चेहरे का भाव

जिस तरह दर्द में

किसी अपने के स्पर्श से मिलता है क़रार

ऐसे क्षणों का अब रहता है इंतज़ार

शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ

और सूरज की किरणों की प्रतीक्षा में

गुज़रना चाहता हूँ रात...

स्रोत :
  • रचनाकार : नित्यानंद गायेन
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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