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वे आ रहे हैं सपने बोने

we aa rahe hain sapne bone

महेश चंद्र पुनेठा

महेश चंद्र पुनेठा

वे आ रहे हैं सपने बोने

महेश चंद्र पुनेठा

वे जो तुम्हारी आँखों में

सपने बोने की बात कर रहे हैं

तुम समझ सकते हो

वे तुम्हारी आँखों को क्या समझ रहे हैं

वे जानते हैं अच्छी तरह

जैसा बोया जाएगा बीज

वैसी ही लहलहाएगी फ़सल

वे यह भी जानते हैं

सबसे फ़ायदेमंद कौन-सी फ़सल है उनके लिए

दरअसल वे

अपने सपनों के बीज

तुम्हारी आँखों में

उगाना चाहते हैं

अपने सपनों को तुम्हारे

जताना चाहते हैं

वे तुम्हारे खेत में

अपने बीज-उर्वरक-कीटनाशक डालकर

भरपूर फ़सल निचोड़ना चाहते हैं

उन्हें खेते की उर्वरता

और पर्यावरण की नहीं

अपनी उत्पादन की चिंता है

सावधान!

खेत मत होने देना अपनी आँखों को।

स्रोत :
  • रचनाकार : महेश चंद्र पुनेठा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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