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वसंत शुक्रिया

wasant shukriya

कुमार अनुपम

अन्य

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कुमार अनुपम

वसंत शुक्रिया

कुमार अनुपम

ख़ुद को बटोरता रहा

हादसों और प्रेम में भी

रास्ते थे कि उम्मीदों से उलझते ही रहे

ठोकरों की मानिंद

घरेलू उदासियाँ रह-रह गुदगुदाती रहीं

कटे हुए नाख़ून-सा चाँद धारदार

डरा आसमान में

काटता ही रहा एकउम्र हमारी अधपकी फ़सल

रंध्रों में अँटती रही कालिख और शोर और बेचैनी अथाह

पनाह

जहाँ का अन्न जिन-जिनके पसीनों खेतों सपनों का पोसा हुआ

जहाँ की ज़मीन जिन-जिनकी छुई-अनछुई

जहाँ का जल जिन-जिन नदियों समुद्रों बादलों में

प्रथम श्वास-सा समोया हुआ

जहाँ की हवा जिन-जिनकी साँसों आकांक्षाओं प्राणों से भरी हुई

नसीब ऐन अभी हमें पतझर में

सबके हित

अपने हित

समर्पित

एक दूब

(कृपया, ऊब से मिलाएँ क़ाफ़िया!)

वसंत शुक्रिया!

स्रोत :
  • पुस्तक : बारिश मेेरा घर है (पृष्ठ 73)
  • रचनाकार : कुमार अनुपम
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2012

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