वसंत में तुम जब आओगी

wasant mein tum jab aogi

राज्यवर्द्धन

राज्यवर्द्धन

वसंत में तुम जब आओगी

राज्यवर्द्धन

एक चेहरा रख आया था

पार्क की बेंच पर

सोचा था—

वसंत में तुम जब आओगी

तो जी भर बतियाएँगे

चिड़ियों से कहेंगे—

संगीत सुनाने को

एवज में उसे

कोदो के कुछ दाने दे देंगे

फूलों से कहेंगे—

खिलने को

ताकि ख़ुशबू की मादकता में

सराबोर हो हम नृत्य कर सके

बदले में गोबर के जैविक खाद को

बिखेर देंगे उनकी जड़ों में

सूरज को कहेंगे—

स्फटिक-सा चमके

ताकि गुनगुने मौसम का

हम ले सके जी भरकर आनंद

बदले में देंगे उसे

अंजुरी भर भरकर अरघ

महुआ से कहेंगे—

टपकने को

धरती पर टपके

अमृत फल चखेंगे

बदले में उसे

पीने को देंगे

उनके ही फलों से बने आसव को

ताकि मादकता को

और बिखेर सके

माघ के चाँद से कहेंगे

चाँदनी बरसाने को

ताकि तुम्हारे जूड़े को

रातरानी के फूलों से सजा सकूँ

बदले में भर देंगे

उसके भी दामन को सितारे से

जानता हूँ—

तुम जब वसंत में आओगी

तो इंद्रधनुष उतर आएगा धरती पर

तुम्हारी गोद में

मेरा सिर होगा

तब स्वर्ग के लिए

कोई क्यों मरेगा!

स्रोत :
  • रचनाकार : राज्यवर्द्धन
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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