वसंत का पता
wasant ka pata
सबसे सीधा है बीज का गणित
वह ताखे पर हो या कटोरी में
नम हो या सूख कर बजता हुआ
एक दम नया हो या हज़ारों वर्ष पुराना
इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता
फ़र्क़ पड़ता है कि किसी भी तरह
उसकी जगह मिल जाए
धरती का कोमल टुकड़ा हो
या कोई बंजर वीरान
पत्थर हो या रेत का किनारा
उसने कभी मना नहीं किया
कि मुझे मत रोंपो इस उजाड़ में
इस धूप की आग में
इस शीत में इस राख में
उसने कभी इनकार नहीं किया
इससे पहले कि वसंत का पता बदल जाए
रोंप दो इस बीज को
रख दो मिट्टी के बीच
ये इनके सगे हैं
मरने नहीं देंगे।
- रचनाकार : शंकरानंद
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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