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वसंत आया

wasant aaya

रघुवीर सहाय

अन्य

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रघुवीर सहाय

वसंत आया

रघुवीर सहाय

और अधिकरघुवीर सहाय

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    जैसे बहन ‘दा’ कहती है

    ऐसे किसी बँगले के किसी तरु (अशोक?) पर कोई चिड़िया कुऊकी

    चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले

    ऊँचे तरुवर से गिरे

    बड़े-बड़े पियराए पत्ते

    कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो—

    खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।

    ऐसे, फुटपाथ पर चलते चलते-चलते।

    कल मैंने जाना कि वसंत आया।

    और यह कैलेंडर से मालूम था

    अमुक दिन अमुक बार मदन-महीने की होवेगी पंचमी

    दफ़्तर में छुट्टी थी—यह था प्रमाण

    और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था

    कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल

    आम बौर आवेंगे

    रंग-रस-गंध से लदे-फँदे दूर के विदेश के

    वे नंदन-वन होवेंगे यशस्वी

    मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व

    अभ्यास करके दिखावेंगे

    यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा

    जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।

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    रघुवीर सहाय

    रघुवीर सहाय

    स्रोत :
    • पुस्तक : अंतरा (भाग-2) (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : रघुवीर सहाय
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022

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