वर्टिकल पोएट्री : लास्ट पोएम्ज़-3
wartikal poetri ha last poemz 3
हर इबारत और हर लफ़्ज़
दिन और रात के समय और स्थिति के अनुसार बदल जाते हैं,
पढ़ने वाले की नज़र कितनी साफ़-शफ़्फ़ाफ़ है
मौत के ज्वार कितनी ऊँचाई से आ रहे हैं
इन वजहों से इबारत और लफ़्ज़ का पाठ बदल जाता है।
किसी से मिलने से पहले
और मिलने के बाद
तुम्हारा नाम वही नहीं रह जाता,
यह सोचने से पहले
और दुबारा सोचने पर
कि कल हम नहीं होंगे
मेरा बोला हुआ शब्द वही नहीं रह जाता।
कोई भी चीज़ अलग होती है
जब उसे दिन में देखा जाए
और उसी चीज़ को अगर रात में देखा जाए,
तो वह अलग होती है
लेकिन वे शब्द जिन्हें मनुष्य लिखता है
और वे शब्द जिन्हें ईश्वर नहीं लिखता
वे शब्द और ज़्यादा स्पष्ट हो जाते हैं।
और ऐसा कोई समय नहीं है,
उम्मीद से भरा हुआ समय नहीं
प्रांजल समय नहीं
तटस्थ समय नहीं,
वह क्षण भी नहीं जो किसी की मौत की ख़बर नहीं ले कर आता,
जो हमारे सभी प्रकार के चिंतन और मनन को एक जगह एकाग्र कर दे,
दूरियों को व्यवस्थित कर दे
और उन शब्दों को विवश कर दे
कि वे फिर से वही बन जाएँ जो वे पहले थे
और उनका वही अर्थ हो जाए जो पहले कभी था।
कोई चाहे या न चाहे
हर इबारत बदल सकती है
हर रूप बदल सकता है
जीवन की रहस्यात्मक अस्पष्टता का चमकता हुआ दर्पण भी बदल सकता है
किसी भी चीज़ का स्वरूप हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
अनंत भी हमेशा के लिए नहीं है।
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : रोबेर्तो ख्वार्रोस
- प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका, अंक-21
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