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वर्षों बाद

warshon baad

विजय कुमार

अन्य

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विजय कुमार

वर्षों बाद

विजय कुमार

और अधिकविजय कुमार

    सालों तक

    कमरे की चुप्पी में रहकर

    मैं बाहर आया,

    मैंने पाया

    सन्नाटे का

    मुझसे बाहर भी मतलब था

    एक हँसी उन्मुक्त

    शुरू हो सकती थी यूँ ही

    सुख का एक रेशमी छोर

    अचानक

    थामा जा सकता था

    वर्षों बाद लगा अचानक

    कच्ची पगडंडी पर चलने का

    कोई भी अनुबंध

    —अनलिखा

    बिना शर्त मैं

    जी सकता हूँ

    वर्षों बाद

    अस्पताल की खिड़की से

    बीमार वृद्ध

    एक मुस्कराया था

    आँगन में आकर टाँका था

    एक बदसूरत लड़की ने

    अपने बालों में गुलाब

    सुबह-सुबह

    बारिश के बाद उगी इस चुप्पी में

    इस तंग गली से

    गुज़र गया

    कोई हरकारा

    वर्षों बाद

    आज अचानक

    यूँ ही

    रची गई एक कविता

    स्रोत :
    • पुस्तक : अदृश्य हो जाएँगी सूखी पत्तियाँ (पृष्ठ 28)
    • रचनाकार : विजय कुमार
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
    • संस्करण : 1981

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