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विवाह गीत

vivah geet

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

अन्य

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और अधिकआकृति विज्ञा 'अर्पण’

    कहवां ही सरग बाबा कहवां ही नरक 

    कहवां बसेला बयकुंठ हो 

    कवने ही सुखवा बाबा सब बलिहारी 

    दुखवा कवन चुभे ढेर हो

    धरती सरग बेटी धरती ही नरक 

    अंगना बसेला बयकुंठ हो

    बेटी के सुखवा पे सब बलिहारी हो

    बेटी के जाइल चुभे ढेर हो।

    बेटी होली धीयवा कुल के अजोरिया हो

    अंखिया बसेला सुख जोति हो

    बेटी के रहला से मनवा सोहताला में

    बेटी में बसेला परान हो

    जब सब जानेल हमरी बाबा हो

    काहें तू करेल विवाह हो

    जगवा के रीति बेटी 

    चलल चलावल जा धीया आवेली पतोहि हो

    बेटी के भागि सुगिया दुई दुई अंगना के

    दुइ कुल करिहें उजियार हो

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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