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विदाई गीत

vidai geet

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

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और अधिकआकृति विज्ञा 'अर्पण’

    अम्मा के अंचरा के खोईचा छींटाला

    बबुआ के सिरवा के पाग हो 

    तलफेली घरवा के धीयवा दुलारी 

    रोवला से फाटे असमान हो।

    निरखेली घरवा ओसरवा दलानीय

    छूटल जाला बगिया बगान हो 

    एही घरवां सूरुज पूछि पूछि उगले

    जगनी भईले विहान हो…

    छतवा के चनवा उतरे हमरे खतरीन

    हमहीं से घर उजियार हो 

    हमरे ही रहला से घर घर लागे 

    कहत रहे बबुआ हमार हो…

    काठ के करेज बाबूअ कई दीहलेन

    अम्मा हम भईलीं सयान हो

    छूटल जाता बीरना के देसवा सीवनवा

    छाती फारि रोवेला परान हो

    बेटी काठ काठ करेज इलीं

    हमरो फाटेला परान हो 

    बेटी ओहूं सूरुज तोहके देखिहें

    पूछि उतरी तोहसे ही चान हो।

    तोहसें ही अन धन घरवा सुसोभी हो

    तुहसे ही उदित बिहान हो 

    बेटी जस ससुरा हाथ लगईबू

    पूअरा में भरि जाई प्रान हो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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