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वक़्त कहाँ

vaqt kahan

निशांत जैन

अन्य

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निशांत जैन

वक़्त कहाँ

निशांत जैन

और अधिकनिशांत जैन

    वक़्त कहाँ अब कुछ पल दादी के क़िस्सों का स्वाद चखूँ,

    वक़्त कहाँ बाबा के शिकवे, फटकारें और डाँट सहूँ।

    कहाँ वक़्त है मम्मी-पापा के दुःख-दर्द चुराने का,

    और पड़ोसी के मुस्काते रिश्ते ख़ूब निभाने का।

    रिश्तों की गरमाहट पर कब ठँडी-रूखी बर्फ़ ज़मी,

    सोंधी-सोंधी मिट्टी में कब, फिर लौटेगी वही नमी।

    जब पतंग की डोर जुड़ेगी, भीतर के अहसासों से,

    भीनी-भीनी ख़ुशबू फिर महकेगी कब इन साँसों से।

    सूने से इस कमरे में कब तैरेंगी मीठी यादें,

    बिछड़े साथी कब लौटेंगे, अपना अपनापन साधे।

    कब आएगा समझ हमें, क्या जीवन का असली मतलब,

    ख़ुशियों को आकार मिलेगा, होंगे सपने अपने जब।

    कभी मिले कुछ वक़्त अगर तो, ठहर सोचना तुम कुछ पल,

    यूँ ही वक़्त कटेगा या कुछ बेहतर होगा अपना कल।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निशांत जैन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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