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वध-निषेध

vadh nishedh

अनुवाद : एम. जी. वेंकटकृष्णन

तिरुवल्लुवर

अन्य

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तिरुवल्लुवर

वध-निषेध

तिरुवल्लुवर

और अधिकतिरुवल्लुवर

    321

    धर्म-कृत्य का अर्थ है, प्राणी-वध का त्याग।

    प्राणी-हनन दिलायगा, सर्व-पाप-फल-भाग॥

    322

    खाना बाँट क्षुधार्त्त को, पालन कर सब जीव।

    शास्त्रकार मत में यही, उत्तम नीति अतीव॥

    323

    प्राणी-हनन निषेध का, अद्वितीय है स्थान।

    तदनन्तर ही श्रेष्ठ है, मिथ्या-वर्जन मान॥

    324

    लक्षण क्या उस पंथ का, जिसको कहें सुपंथ।

    जीव-हनन वर्जन करे, जो पथ वही सुपंथ॥

    325

    जीवन से भयभीत हो, जो होते हैं संत।

    वध-भय से वध त्याग दे, उनमें वही महंत॥

    326

    हाथ उठावेगा नहीं जीवन-भक्षक काल।

    उस जीवन पर, जो रहें, वध-निषेध-व्रत-पाल॥

    327

    प्राण-हानि अपनी हुई, तो भी हो निज धर्म।

    अन्यों के प्रिय प्राण का, करें नाशक कर्म॥

    328

    वध-मूलक धन प्राप्ति से, यद्यपि हो अति प्रेय।

    संत महात्मा को वही, धन निकृष्ट है ज्ञेय॥

    329

    प्राणी-हत्या की जिन्हें, निकृष्टता का भान।

    उनके मत में वधिक जन, हैं चण्डाल मलान॥

    330

    जीवन नीच दरिद्र हो, जिसका रुग्ण शरीर।

    कहते बुथ, उसने किया, प्राण-वियुक्त शरीर॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : तिरुक्कुरल : भाग 1 - धर्म-कांड
    • रचनाकार : तिरुवल्लुवर

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