उससे मेरा संबंध क्या था?

usse mera sambandh kya tha?

जसिंता केरकेट्टा

जसिंता केरकेट्टा

उससे मेरा संबंध क्या था?

जसिंता केरकेट्टा

 

झारखंड में चौड़ी सड़क के लिए कटे पेड़ों को देखते हुए

वह आम का पेड़ 
ठीक यहीं था, सड़क किनारे
जहाँ से मुझे हर दिन 
बस पकड़नी होती,
बस जब तक पहुँचती नहीं
वह मुझे तंग करता
पहले मेरी ओर एक आम फेंकता
मैं ख़ुश होकर जैसे ही दाँत गड़ाती
“ये तो थोड़े खट्टे हैं” ग़ुस्से में बोलती 
वह हँसता : 
तुम बस में सोती रहती हो न!
यह नींद भगाने के लिए था,
अच्छा अब मीठे आम गिराता हूँ 
सच्ची में!
और तब तक बस आ जाती।

उस दिन बस पकड़ने सड़क पर पहुँची
वह ग़ायब था।

सालों से मेरा ठीक यही इंतज़ार करता
वह आम का पेड़ 
कहाँ जा सकता है भला?
दूसरे दिन अख़बार में पढ़ी
उसके मारे जाने की ख़बर।

मैं उस दिन ख़ूब रोई 
जैसे मारा गया हो कोई घर का अपना
मैं उस दिन सोई नहीं रात भर
कैसे काट दिया गया वह यही सोचकर।

दूसरे दिन दौड़ी उधर
सोचा उसकी गंध समेट ले आऊँगी
अपने आँगन में रोप दूँगी
उसकी गंध बढ़ेगी
तब मैं उसकी गंध लेकर 
घर से निकलूँगी
लौटूँगी जब उसकी गंध को 
आँगन में खड़ी पाऊँगी।

मगर मेरे सपने टूट गए 
धूल का बवंडर जब हँसने लगा मुझ पर
देखा, मेरे आम के पेड़ की गंध
धूल के बवंडर से लड़ रही थी
बिल्कुल गुत्थमगुत्था। 

मैं भागी थाने की ओर
यह रपट लिखवाने कि
मेरे साथी की हत्या हुई है,
थाना ठहाके लगाकर हँसने लगा
डंडा दिखाता हुआ बोला
पहले तू बता 
तेरा उसके साथ संबध क्या था?

मैं आज तक दर-दर भटक रही हूँ
यही बताने के लिए 
कि उसके साथ मेरा संबंध क्या था
मगर वहाँ कोई नहीं अब
ग़ायब हो चुका है सब
अब सिर्फ़ दूर-दूर तक धूल उड़ाती
चौड़ी सपाट सड़कें भर हैं...।

स्रोत :
  • रचनाकार : जसिंता केरकेट्टा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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