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कुछ बेरोज़गार लड़के

kuch berozgar laDke

वंदना मिश्रा

अन्य

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वंदना मिश्रा

कुछ बेरोज़गार लड़के

वंदना मिश्रा

और अधिकवंदना मिश्रा

    कुछ बेरोज़गार लड़के हों तो

    सूनी रह जाए गलियाँ,

    बिना फुलझड़ियों के रह जाए दीवाली

    बिना रंगों के रह जाए होली

    बेरौनक़ रह जाए सड़कें,

    त्योहारों का पता चल पाए,

    बिना इनके हुड़दंग के।

    मंदिर सूने रह जाए,

    बिना शृंगार के

    यदि ये चंदा उगाहे

    फूँके ट्रांसफ़ॉर्मर दिनों तक बने,

    यदि ये नारे लगाएँ

    धरने, प्रदर्शन, तमाशों के लिए

    हमेशा हाज़िर रहती है इनकी जमात

    हम बड़े ख़ुश होते हैं जब हमारी

    सुविधाओं के लिए ये नारे लगाते हैं,

    या पत्थर फेकते हैं,

    पर सामने पड़ते ही बिदक जाता हैं

    हमारा अभिजात्य,

    हम इन्हें मुँह नहीं लगाते,

    नकी खिलखिलाहट खिजाती है हमें।

    हम बंद कर लेते हैं,

    खिड़कियाँ, दरवाज़े...

    इनकी आवाज़ सुनकर

    अजीब तरह से ताली बजाकर

    हँसते हैं,

    नुक्कड़ पर खड़ा देखकर कोसते हैं हम,

    लफ़ंगा समझते हैं हम इन्हें

    और ये हमें

    स्वार्थी समझते है।

    सचमुच हम चाहते हैं,

    ये नज़र आए

    हमें बिना काम

    पर इन्हें कहीं खड़ा रहने की जगह

    नहीं दे पा रहे हैं हम या हमारी सरकार।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंदना मिश्रा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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