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टूटना एक सकर्मक क्रिया है

tutna ek sakarmak kriya hai

बजरंग बिश्नोई

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बजरंग बिश्नोई

टूटना एक सकर्मक क्रिया है

बजरंग बिश्नोई

और अधिकबजरंग बिश्नोई

    लो अब टूटता हूँ

    टुकुर-टुकुर क्या देखते हो

    दिखता नहीं है टूटना

    पेड़ से फल टूटता है

    ऐसे नहीं

    आकाश से तारा टूटता है

    ऐसे भी नहीं

    प्रेम करने वालों का दिल टूटता है

    ऐसे भी नहीं

    हाथ से छूटकर गिरा

    काँच का गिलास टूटता है

    ऐसे भी नहीं

    अब मुझे देखना

    बंद भी करो

    कुछ नहीं दिखाई देगा

    कोई आवाज़ चटकने की होगी

    टुकड़े बिखरेंगे

    पके फल की गंध पहुँचेगी तुम तक

    आकाश से गिरती हुई

    फुलझड़ी बुझती दिखेगी

    टूटता हूँ जैसे आदमी टूटता है

    बिना किसी आवाज़ के

    बिना आहट के

    ऊपर से साबुत दिखते हुए

    टूटा हुआ आदमी भी

    टूटता है कई-कई बार

    उसके टूटने की क्रिया

    ध्वनिहीन और अदृश्य होती है

    फिर भी संपूर्ण ब्रह्मांड में घटित होती है

    टुकुर-टुकुर देखने की चीज़ नहीं है—

    टूटना

    स्रोत :
    • रचनाकार : बजरंग बिश्नोई
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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