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तुमने लगाया था

tumne lagaya tha

विवेक चतुर्वेदी

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विवेक चतुर्वेदी

तुमने लगाया था

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    तुमने लगाया था

    जो मेरे साथ

    एक आम का पेड़

    तुम्हारा होना उस पेड़ में

    आम की मिठास बनके

    बौरा गया है

    चूसते समय जो उठी है

    खट्टी लहर वो मेरी है

    आम की गुदाज़ देह का

    पीलापन तुम्हारा है

    तुम्हारी ही हैं

    घनी हरी पत्तियाँ

    और वो जो नन्ही-सी नर्म गुही है

    हम दोनों के बीच

    वो अँकुआने को मचलता जीवन है

    पेड़ का तना और कठोर छाल मैं हूँ

    पर गीली मिट्टी को दूर-दूर तक बाँधने वाली जड़ें तो तुम ही हो

    आज आषाढ़ की पहली बारिश में भीगकर

    ये आम का पेड़ लहालोट हो गया है

    पत्तियों की पूरी देह को छूकर

    टप-टप बरस रहा है पानी

    छाल तरबतर हो दरक रही है

    पर फिर भी हम

    कुछ राहगीरों के लिए

    इस तेज़ बारिश में

    छत हुए हैं

    एक राहगीर के बच्चे की

    रस छोड़ती जीभ को पढ़

    तुम टप से गिर पड़ी हो

    खुल पड़े हैं तुम्हारे ओठ

    बच्चा तुमको दोनों हाथों में थामकर

    चूस रहा है

    और तुम्हारी छातियाँ

    किसी अजस्र रस से

    उफना गई हैं

    एक कोयल ने अभी-अभी

    कहा है अलविदा

    अब वो बसेरा करेगी

    जब पीले फागुन सी

    बौर आएगी अगले बरस

    हम अपनी जड़ों के जूते

    मिट्टी में सनाए

    खड़े रहेंगे बरसों बरस

    मैं अपने छाल होने के खुरदरेपन से

    तुम्हारी थकी देह सहलाता रहूँगा

    पर सो जाना तुम

    कभी रस हो जाएँगे फल

    घनी उदासी से लिपटकर

    रोने हो जाएगा तना

    कभी बहुत बड़ी छाती

    ठिठुरती ठंड में सुलगकर

    आँच हो जाएँगी टहनियाँ

    छाँव हो जाएँगी हरी पत्तियाँ

    कभी सूखकर ये

    पतझड़ की आँधियों में जाएँगी

    उनके साथ हम भी तो

    मीलों दूर जाएँगे

    गोधूलि... तक हम कितनी दूर जाएँगे

    तुमने लगाया था जो मेरे साथ एक आम का पेड़।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विवेक चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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