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तुम्हारी ही गली में तुम्हारे दीदार के बिना मर जाना

tumhari hi gali mein tumhare didar ke bina mar jana

आसित आदित्य

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आसित आदित्य

तुम्हारी ही गली में तुम्हारे दीदार के बिना मर जाना

आसित आदित्य

और अधिकआसित आदित्य

    मैं रेत के जंगल में प्यास से मरा

    हालाँकि वो मेरी आँखों में रहा समुंदर की तरह

    ग्रहों-नक्षत्रों के लगाए कई चक्कर

    परंतु कभी नहीं किया ग़ौर

    कि वो वही था जो भीड़ में 'माफ़ करिएगा' कहते हुए

    निकल गया था दो क़दम आगे मुझसे

    जब कँटीले बबूल के पीछे छुप रहा था सूरज

    तब मंदिर का गोल-गोल चक्कर काटते

    बच्चे की फिरंगी नचाने में मसरूफ़ था वो

    वो गेहूँ के बोझ ढोते किसानों के बीच रहा

    रिक्शेवाले के बीड़ी जलाने और सुस्ताने में रहा

    जैसा कि शब्दों के तानाशाह ने कहा था―

    वो रहा मुझमें भी

    तिल में तेल और चकमक में आग की तरह

    वो सर्वव्याप्त रहा परंतु नहीं दिखा मुझे

    खोजने पर चीज़ें अक्सर नहीं मिला करती हैं

    पीछे भागने पर भला कहाँ हाथ आती है तितली?

    स्रोत :
    • रचनाकार : आसित आदित्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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